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Bachpan
By Khushbu Sharma
लौटकर जाना है वहाँ फिर एक बार,
जहाँ, किसी से कोई उम्मीद नहीं थी,
और खुश थे हम।
आजाद थी जिंदगी परिंदो सी,
न किसी को पाने की खुशी न,
किसी के जाने का गम।
धोखे की परिभाषा से दुर थे हम,
मशगूल थे अपनी ,
मासुमियत को जीने में तब।
ख्वाबों सी थी ये जिंदगी खुबसूरत,
इस फरेब की दुनिया ,से तो
वाकिफ हीं नहीं थे हम।
बारिश में कागज की नाव तैरा कर,
कितने खुश थे हम,
आसमानों में उडने की चाहत रखा करते थे हम,
फिर एक चोकलेट पर ही खुश हो जाया करते हम।
साहब बचपन था वो मेरा,लौटा दो ना
बस माँ की गोद थी जिसमें,
सुकून की नींद सोया करते थे हम।
By Khushbu Sharma