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Aurat Ka Tyohaar
Updated: May 31
By Nitesh Mohan Verma
मुझ तक आने के लिये हवा भी इजाज़त माँगती है
बाज़ारों में
परिवारों में
दबती हूँ, लुटती हूँ मैं
और सुना है किसी एक दिन
तुम औरत का त्योहार मनाते हो
या तो मेरा त्योहार मनाना बन्द करो
या इन्सानियत को शर्मसार बनाना बन्द करो
अगर यूँ मुखौटे में रहना है तुम्हें
ये घर-परिवार बनाना बन्द करो
दोष कुछ मेरा भी है
कायदों में सिमट जाना स्वीकार किया
देवी बनी, दुर्गा नही
निर्बल रही
नहीं कभी प्रतिकार किया
चलो लिखती हूँ नई गाथा
विजय की, बलवान की
रखूँगी मान रिश्तों का मैं
पर रखूँगी मान स्त्री पहचान की
देवी का सिँहासन नही
स्वर्ण, पुष्प, श्रृंगार नही
नारीत्व मेरा बल, मेरा संकल्प
पौरुष की कोई ढ़ाल नही
कोई एक दिन का त्योहार नही
ये द्वन्द अब मेरा है
मेरा सम्मान, मेरी पहचान
पुरुषों की नगरी में
नारी का स्थान
तुम ढ़ोल-नगाड़ा बंद करो
खींच लो हाँथ
सहारा बंद करो
ये मुखौटा तुम उतार दो
बाजार सजाना बंद करो
औरत का त्यौहार मनाना बंद करो
By Nitesh Mohan Verma