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Aurat

By Deepmala Gaikwad


एक औरत की जुबानी सुनना एक औरत की कहानी आई तू बनकर लक्ष्मी का रूप माता पिता के लिए देवी का स्वरूप बचपन बीता अटखेली में मेरी साथी सहेली में बीता बचपन पड गई बेड़ियां अपने ही घर की उतरी न सीढियां अब उठने लगा मन में सवाल क्या औरत का यही है हाल हसने बोलने घूमने पर लग गई रोक हर चीज पर नजर रखे लोग देखती रही सपनो का अंबर कितने ही थे रोम रोम मेंमुझमें हुनर जल गए झट से सपने सारे अपनों के आगे ही हम हारे बंध गए बंधन में नाम है शादी !! सात फेरों में झोंक दी अपनी आजादी नाम मिले नए ,पत्नी ,बहु ,भाभी, रहा न खुद का वजूद जरा भी पति की सेवा ही तेरा परम धर्म त्याग त्याग ही तेरा परम कर्म



देखते देखते इन नामों में जुड़ गया एक और नाम "मां, "बनकर गुजरने लगा जीवन तमाम भूल गई खुद को पूरी तरह सारे रिश्तों में गुम हुई जीने की वजह उसने सबकी ज़रूरत का रखा मान लेकिन मिला न उसको ही सम्मान घिसती रहती फिर भी है निभानी लेकिन उसकी ही किसीने ने कद्र न जानी संवारा उसने सारा घर परिवार कभी न मानी कर्तव्यों से हार सबके साथ रहकर भी रह गई अकेली आसुओं से करली तकिया गीली दिल का दर्द दिल में रह गया कुछ बोझ आसुओं से बह गया बदन तेरा जैसे कोमल डाल फिर भी मुसीबत में बनी अपनों की ढाल कौन कहता है कि तू औरत है तू हर परिवार की दौलत है दुर्गा ,लक्ष्मी ,शक्ति ,तेरे कई नाम हे !! औरत तुझे शत शत प्रणाम!!



By Deepmala Gaikwad





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