Anokhi Duniya
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Anokhi Duniya

By Srishti Kyal



जगमग आंखों ने एक सपना देखा,

सुंदर एक नगरी को अपना देखा,

आसमान में जलता चंद्रमा देखा,

धरती को तारों से सजा देखा।।


बादलों पर सैर करती जलपरियां,

लहरों में पंछी करते अठखेलियां,

पेड़ों पर आशियां बुनती मछलियां,

धरा पर देखी खिलती कलियां।।



तारों की चादर पर चलती,

हर मोड़ पर आहे भरती।

ओढ़ी पर्वतों ने चादर सुनहरी,

कैसी मायावी है यह नगरी?


मंत्रमुग्ध कर रहा ये भ्रम,

सच्चाई से दूर कर रहा ये भ्रम,

ख्वाब है, या है हकीकत,

सवालों में उलझा रहा ये भ्रम।।


आंखें खुली तो लगा ख्वाब था,

फिर क्यों एक सच्चा एहसास था,

दूर कहीं बस्ती होगी ऐसी दुनिया,

न जाने नाता मेरा क्या खास था।


By Srishti Kyal



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