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Ae Humsafar
By Mukesh Khubchand Kungwani
ऐ हमसफ़र
जब भी निकला हूँ अपने घर की तरफ,
आयी है तेरी याद ऐ हमसफ़र,
लगता नहीं जी पाऊँगा ज़्यादा अब मैं,
तेरी दूरी का यह कैसा है असर ऐ हमसफ़र,
बिछड़ना तेरा और मेरा तो शायद क़िस्मत थी हमारी,
मगर इस तरह तड़पूँगा तेरे बिन ना थी यह खबर ऐ हमसफ़र,
तेरी हसीन यादों का सहारा केवल नहीं काफ़ी जीने के लिए,
ना हो धूप तो छोड़ देता है साथ साया भी ऐ हमसफ़र l
By Mukesh Khubchand Kungwani