- hashtagkalakar
Abb-E-Chasam
By Birkunwar Singh
कैसे वो आब- ए-चश्म की कीमत जाने
जो खुद ही के मरने पर ना रोये
कैसे वो बुंद बुंद की कहानी को पढ़ते
जो आखें कभी पढ़ न पायें
सरकते आंसू भी महकने लगे हैं
यादें तेरी में ही आने लगे हैं
मैं भी उन्हें बहने देता हूं
अब साफ कर रुमाल से कुफ़र कमाने लगे है
आने लगा है मजा इस दौर-ए-हाजिर का
मत पूछो अब हाल इस बीमार मरीज़ का
ख़ुशी है आने लगेगी गम में साकी
आसुओं से ही रहेगा रिश्ता कबीर का
By Birkunwar Singh