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Aahat Or Bagawat
By Laxman Dan
धरती पर आ गिरा है चाँद, अंबर में यह इंकलाब कैसा । ठहरे समंदर में लहरे उठ रही खामोश जल में यह सैलाब कैसा ।।
जुल्म की हदें पार हुई
फिर भी चुप्पी, यह जवाब कैसा । किसी बगावत की यह आहट है कुछ बदलने की चाहत है
आज गए, आज गए सरताजों के ताज गए कलंदर-सा यह नवाब कैसा ।।
देख कुछ ऐसा जो औकात पार करें
जो औकात में रहे फिर वो ख्वाब कैसा ।
काले लोग, प्यारा अंधियारा, चराग जला कि हाथ कटे
फिर हाथों में यह मेहताब कैसा ।।
किसी बगावत की यह आहट है
कुछ बदलने की चाहत है
By Laxman Dan