सरहद
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सरहद

By Vidhi Sharma


रात हो गई चलो सो जाते है

पर जरा एक बार उनके बारे में सोचो

जो अपने दिन रात सरहद पर बिताते है ,

न ईद देखते है न होली - दिवाली न देखते है नया साल

बस हर वक्त जीते है देश के लिए चाहे जो भी हो हाल ,

न गर्मी का पता है ना सर्दी का

बस रखना है मान उस वर्दी का ,

यह जो हम खुशी से त्योहार मनाते है

वो सीमा पर रहकर अपना देश बचाते है ,




कर्तव्य के लिए चले गए अपने घर से दूर

गर्व से गए न कि हो कर मजबूर ,

फर्ज़ के लिए अपने शौक़ से हट गए

इस तरह से वह अपनी मातृभूमि के लिए डट गए ,

पूरे साल में केवल दो महीने के लिए घर आते है

जाते जाते अपने साथ यादें रखकर ले जाते है ,

दुश्मन की गोली के निशाने पर बैठे है

साथ में अपने देश की दुआओं का तूफान लिए बैठे है ,

लोग जीते है अपनो के लिए

वह जीते है वतन के लिए ,

देश की शान है यह धरती मां के सेवक

हर परिस्थिति में चमकते है जैसे अंधेरे में दीपक।



By Vidhi Sharma




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