Sali
- Hashtag Kalakar
- Oct 28
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By Sumit Kumar Agrawal
मेरी सगाई मे उसके बहन के, पीछे–पीछे छिप–छिप कर
एक गुड़िया ने देखी मुझको, प्यार से निहार कर
दिखने मे वो दुबली पतली , नजर भोली भाली थी
प्यार से छेड़ने आई थी मुझको ,वो मेरी एक लौती साली थी
जूता चुरा कर मारे खुशी के , वो बहुत इतराई थी
नेग के पैसे लेने खातिर ,वो बच्चो सा जिद लाई थी
मिर्ची वाला पान खिलाकर ,उसके गाल मे लाली थी
जैसी भी थी वो नखरेवाली ,वो मेरी प्यारी साली थी
कितना प्यारा मंजर था वो, जब इंतजार हमारा होता था
हाथों मे गुलदस्ते लिए, नजर किनारा किनारा होता था
अपनी प्यारी हाथो से वो , खीर पकवान बनाती थी
प्यार से हमारे मुंह मे साली ,रसगुल्ले ठुसे जाति थी
बागों की एक फूल खो गई, बाग हो गया सुना
साली की अब शादी हो गई, ससुराल हो गया सुना
सास ससुर की सेवा कर वो, अपनी गृहस्ती में झूल गई
पति के प्यार मे ऐसी उलझी, जीजा को वो भूल गई
By Sumit Kumar Agrawal

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