Prem
- Hashtag Kalakar
- Aug 18
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By Deepak Kulshrestha
क्या पता था कि इस मकर सक्रांति पर सिर्फ सूर्य ही दक्षिणायन से उत्तरायण में नहीं आयेगा बल्कि मेरे बरसों पहले खोये प्रेम का भी उत्तरायण हो जायेगा. पिछले कुछ समय से मैं दिल्ली की जिस हाउसिंग सोसाइटी में रह रहा था वहाँ कि RWA ने तय किया कि मकर सक्रांति पर दान की सनातनी परंपरा को कायम रखते हुए इस वर्ष दिल्ली के रैन-बसेरों में रह रहे लोगों को सर्दी से बचने के लिये कुछ कम्बल आदि दान किये जायें सो एक सप्ताहांत पे एक गाड़ी में ख़रीदे गये कम्बल आदि सामान रख कर हम पूर्वी दिल्ली के एक रैन-बसेरे में गये. वहाँ कम्बल बाँटते समय मेरी नज़र उस पर पड़ी. एक पल को तो लगा कि धोखा हुआ है पर फिर पलट कर देखा और फिर-फिर देखा तो यक़ीन हो गया कि हाँ, वही थी. थोड़ी गुमसुम, थोड़ी खोयी हुई सी लगी....अपनी आँखों पे यकीन नहीं हुआ...’साउथ दिल्ली’ के पॉश इलाके की रहने वाली लड़की जो कभी पूर्वी दिल्ली की तंग गलियों के नाम से ही नाक-मुँह सिकोड़ने लगती थी वो पूर्वी दिल्ली में? और वो भी इस हाल में? एक रैन-बसेरे में? उसके तन पर ठीक से कपड़े भी नहीं थे, जो कुछ उसने पहना हुआ था वो चिथड़ों से थोड़ा ज्यादा और कपड़ों से थोड़ा कम था. दिमाग में बहुत कुछ घूम गया...
वो दिन याद आने लगे जब हम गुडगाँव की एक मशहूर MNC में साथ-साथ काम करते थे. मैं मध्य-प्रदेश के अपने कस्बे से नया-नया महानगर में आया था और वो जन्म से ही यहीं पली बढ़ी थी. फ़र्क होना ही था और फ़र्क था भी. पर इस फ़र्क के अलावा कुछ और भी था जो तमाम फ़र्क के बावज़ूद हमें एक-दूसरे की तरफ खींच रहा था. जल्दी ही हम काफ़ी वक़्त साथ-साथ गुजारने लगे. उसने मुझ कस्बाई आदमी को महानगर के माहौल से वाकिफ़ करवाया और सैटल होने में भी मदद की. हम साथ बाहर घूमने, पिक्चर देखने भी जाने लगे यानि कि वो सभी कुछ हो रहा था जो एक प्रेम कहानी में हो सकता है. मुझे आज भी याद है पहली बार जब उसने मुझे ‘date’ पर एक पाँच सितारा होटल की कॉफ़ी शॉप में बुलाया था. जी हाँ, पहला निमंत्रण उसकी तरफ़ से ही आया था. जब कॉफ़ी शॉप में उस शाम हम मिले तो उसने एक कॉफ़ी और एक वोदका आर्डर की. वेटर जब हमारा आर्डर लेकर आया तो वेटर ने कॉफ़ी उसकी तरफ और वोदका मेरी तरफ रखी जिसे उसने बदल दिया यानि कॉफ़ी मेरी तरफ और वोदका उसकी तरफ़...वेटर कुछ अचरज से हमें देखता हुआ चला गया. फिर तो यह क्रम और कार्यक्रम कई बार हुआ और हर बार कॉफ़ी और वोदका की जगह की इसी प्रकार अदला-बदली होती रही. हमारा प्रेम अभी डगमगाते क़दमों से चलना सीख ही रहा था कि एक project के लिये उसे अमेरिका भेज दिया गया और वहाँ जाकर कुछ समय तक तो संपर्क बना रहा पर फिर न जाने क्या हुआ धीरे-धीरे वो खो गयी. संपर्क टूट गया और सन्देश आने बंद हो गये. क्या हुआ ये कभी पता नहीं चला पर मैं उसे कभी भूल नहीं पाया.
चिट्ठी न कोई संदेस, न जाने कौन सा है वो देस, जहाँ तुम चले गये...समय गुजरता रहा पर एक कसक बनी रही. बीते कई वर्षों में अकेले जीने की आदत हो गयी, मैंने अपने को और ज्यादा व्यस्त कर लिया. लेकिन आज अचानक उसे इस हाल में देखा तो कई सवाल ज़ेहन में तैर गये... अमेरिका से पूर्वी दिल्ली के इस रैन-बसेरे का सफ़र जाने किन-किन पड़ावों से गुजरा होगा? परिवार वाले कहाँ गये? सवाल बहुत सारे थे पर जवाब देने वाली अपने आपे में नहीं थी. मुझे याद आ रही थी उस फेमस मॉडल की कहानी जो ड्रग्स का शिकार होकर एक दिन ऐसे ही दिल्ली की सड़कों पर मिली थी.
कम्बल बाँटने का कार्यक्रम खत्म हुआ और वापिस लौटने का समय हो गया पर मेरा मन पीछे ही खिंचा जा रहा था, आखिर वो मेरा प्यार थी, मैंने बरसों उसका इंतज़ार किया था, उसे इन हालातों में छोड़ कर कैसे जा सकता था? क्या करूँ ये भी समझ नहीं आ रहा था? एक डर ये भी था कि साथ आये लोग क्या सोचेंगे? वो चार लोग जब पूछेंगे तो उन्हें क्या जवाब दूँगा? तभी अचानक वो मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी और अपनी चमकीली आँखों से मुझे देखने लगी. मुझे आज भी उसकी आँखों में वही चमक दिखायी दे रही थी जो मैं बरसों पहले देखता था. प्रेम ऐसा ही होता है, जब प्रेम होता है तो तो हर जगह सिर्फ प्रेम ही दिखता है और कुछ नहीं. मेरे लिये ये नज़ारा भी कुछ ऐसा ही था.
वो मुझे पहचान पा रही थी या नहीं ये तो कहना मुश्किल है पर मैं तो अपने होशोहवास में था, मैं तो उसे पहचान रहा था और अंत में सारे सवाल मिट गये और रह गया सिर्फ प्रेम. मैंने हाथ बढ़ा कर उसका हाथ थाम लिया.
By Deepak Kulshrestha
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