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Khoj
Updated: Jan 12
By Dr. Viral Sarvaiya (PT)
चली है आज सत्य के खोज की नैय्या।
पहुच गए हैं हम उस काल के वन मणिकर्णिका।
अंधकार का हृदय चिरती खड़ी हैं आज गंगा।
हूए हैं हैरान यम भी, मृत्यु की रोशनी ने दिखाया जीवन का रस्ता।
छै का अंत कर शक्ति का स्वरूप है सातवा,
आठवे के मनोरंजन में पोच गए मथुरा।
पचीस दुर्भावनाओं को सुलाकर यमुना जगी है।
गीता के ज्ञानधारक को संभाले हुए, जीवन आज पिता के मस्तिक्श पे दिखी है।
कहते हैं जितने तर्क उतने मार्ग, दृश्य अदृश्य के जाल को काटकर,
विवेकानंद के गुरु के द्वार पहुच गए दक्षिणेश्वर।
विश्वास तो काली मूर्ति पर भी हो जाए, यही भावना जुड़ जाए।
वही मां की गोदी सीर रख रामकृष्ण रॉए, जीवन रूपी आसुओं को प्रेम से पिरोये।
ऊँचे ऊँचे पहाड़ो मे रहती है सप्तशृंगी,
पहुच गए उस शक्ति से मिलने वणी।
अष्टभुजाओ का प्रभाव ऐसा, सारी दिशाओ में सैदैव चिंता करती मां जैसा।
जीवन के सार को बताता वैसा, मानो खोया हुआ बालक मां को पुकारे मयूस बैठा।
मिश्रन है वो तीन तत्वों के, प्रेम, ज्ञान, तेज के भंडार।
पहुच गए कृष्ण नदी के तट लेने दत्तात्रेय का आधार।
चीरंजीवी, तेजरूप, आनंद की परिभाषा, श्रीपाद वल्लभ बैठे देने आसरा।
पैरओ पे चलना सीख गए, बुद्धि से उड़ना। जीवन का पता तब चला जब मन ने सीखा गुरु चरनो में गिरना।
उगते, डूबते, जलते सूरज को देख, मन बैठा है शांत।
देख महावीर का प्रताप, प्रश्नों का मायाजाल बन गया राख।
जीवन सत्य के नाव पे चले थे हम वीर,
मन में जगा है त्याग का भाव, हो गए हैं स्थिर।
भीतर जाने का मार्ग मिला, जीवन का अर्थ खिला,
मूड गए अंतर की और, बुद्ध आज मुजमे जीवित दिखा।
By Dr. Viral Sarvaiya (PT)