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Dost
By Viraj Tekale
एक अनजाना मुसाफिर आज दोस्त बन गया।
बातों-बातों में हसी के गुब्बारे फोड गया।
किसी भी परेशानी का अकेला हल बन गया।
वह यार इस दिल का मरहम बन गया।
रास्तों से लंबी उसकी बकवास है।
और धुंधली मंजिल जैसी उसकी बुद्धि।
पागलों जैसी उसकी हरकतें हैं।
और राक्षस जैसी उसकी हंसी।
दिल का सच्चा और जुबान का पक्का मिल गया।
दोस्ती के शब्द का सही मतलब मिल गया।
कितना भी फस क्यूं ना जाऊ किसी भी फसड़ मैं
अंधेरे से उजाले तक का एक जरिया मिल गया।
जुगनू बनके आया था वो, सितारा बनकर रह गया।
दिल लेके आया था वो, दवा बनकर रह गया।
शुक्रिया खुदा का जो मेरे लिए ये दोस्त भेजा
जो मुसाफिर बनके आया था, मेहमान बनकर रह गया।
By Viraj Tekale