By Hemant Kumar
बेशक ! वो मेरी ही खातिर टकराती है ज़माने से ,
सौ ताने सुनती है
मैं लाख छुपाऊं , वो चहरे से मेरे सारे दर्द पढती है
जब भी उठाती है हाथ दुआओं में ,
वो माँ मेरी तकदीर को बुनती है,
भुला कर दुःख, तकलीफ सारे ग़म ज़माने के ,
माँ औलाद की मुस्कुराहट में अपनी हर खुशी ढूँढ़ती है
By Hemant Kumar
Comments