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Kyu
By Nilofar Iqbal Shedbalkar
क्यों आजाद पंछी की तरह उड नहीं सकता है इंसान
जब की ख्वाहिशे तो उसकी छुती है आसमान
बंदिशो के दायरे में घिरा हे इताना
की दिल पुछता है हर रोज तुझे सुकून है कितना
दिल का क्या है दिल ही तो है बस
हर रोजके उसके ठिकाने हैं नए दस
देख तो सकते है मगर छु नहीं पाते
ख्वाबों के बुलबुले कुछ ऐसेही नजारे है दिखाते
इस दुनिया में हर कोई झूट में जीता है
जिंदगी आसान है उसकी जो हर दिखावे को समझता है
अफसोस है मगर कि वो कुछ कर नहीं पाता है
इन दिखावे की बेडियोंसे जुंज नहीं पाता हे
क्यू की दिल तो कैद है एक पिंजरे में
दिमाग के किसी अंधेरे मे
दुनिया के झूठे नजारे में
क्यू की दिल तो कैद है एक पिंजरे में
By Nilofar Iqbal Shedbalkar