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Asu

By Birkunwar Singh


काश मैं होता आंसू तेरी आँखों का

साथ निभाता दिन और रातों का


कभी महफ़ूज़ रखता तो कभी सताता

ख़ुशी में भी और गमी में भी आता

हर पल तेरे चश्म में बसता

वहीं से जाता मेरे घर को रास्ता


बिन वक़्त के अगर करता याद तुझे

तो हंस के करना माफ मुझे

ऐसे यूं ही मत इनको गिराया कर

पता है तेरे सब राज़ मुझे


वो बारिश में आंसुओं का आना

खुदा की मर्जी है

एक एक बूंद बूंद ही आना

उसकी मुजावरी है



गिर जाऊं अगर आखों से

सरकते तेरी गालों से

धड़कन बढ़ जाए उन रातों से

होठों पे गिर के सिमट जाऊँ तेरे हाथों से


खैर माँगना तू सब की कबीर

कहीं एक वजह ना हो उन सब की पीड़

हर बूँद की अपनी एक कहानी होगी

तभी आंखों की नमी में रूहानी होगी


आज भी यही मांगा खुदा से

रख के परे हिसाब वो लाखों का

कि काश मैं होता आंसू तेरी आँखों का

कि काश मैं होता आंसू तेरी आँखों का


By Birkunwar Singh



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