घर
top of page

घर

By Pragya Sharma



एक उम्र बीती है खून जलाते

हों शाम को घर जाते हाथ खाली नहीं

काफ़ी वक्त बीता है खुद को समझाते

सब बेहतर होगा 'गर तुम बेहतर बनीं


सिरे से सिरे तक उधेड़ दी शक्सियत अपनी

चुन-चुन‌कर जला दी ख़बासत अपनी

नापसंद थी तुम्हें मिटा दी खैरियत अपनी

फिर सबसे छिपा दी हर चाहत अपनी



कुछ पल बीतें हैं खुद को बनाते

मुकम्मल तो अब भी मैं नहीं बनी

कदम चल चुके हैं अब बता दें

क्यों लगता है जैसे मेरा कोई घर नहीं


By Pragya Sharma



34 views5 comments

Recent Posts

See All

Maa

By Hemant Kumar बेशक ! वो मेरी ही खातिर टकराती है ज़माने से , सौ ताने सुनती है मैं लाख छुपाऊं , वो चहरे से मेरे सारे दर्द पढती है जब भी उठाती है हाथ दुआओं में , वो माँ मेरी तकदीर को बुनती है, भुला कर 

Love

By Hemant Kumar जब जब इस मोड़ मुडा हूं मैं हर दफा मोहब्बत में टूट कर के जुड़ा हूं मैं शिक़ायत नहीं है जिसने तोड़ा मुझको टुकड़े-टुकड़े किया है शिक़ायत यही है हर टुकड़े में समाया , वो मेरा पिया है सितमग

Pain

By Ankita Sah How's pain? Someone asked me again. " Pain.." I wondered, Being thoughtless for a while... Is actually full of thoughts. An ocean so deep, you do not know if you will resurface. You keep

bottom of page