top of page
  • hashtagkalakar

2. Chuppi Ya Cheekh

By Shashi Shikha


चुप्पी सा धे ची खों की आवा ज़, रह रह कर मेरे का न सुन्न कर रही है. मेरे दि मा ग की बत्ति यां डगमगा रही हैं और शा यद अब बुझ भी जा एंगीएं गी.

इस चुपचा प की ची ख में नि र्दयी ता कत है , ये आग है , लपलपा ती हुई, न बुझने वा ली , मेरे आत्मा को जला ने वा ली . ये चुप्पी वा ली ची ख बहरूपि या है, जो दि खती ही नहीं पर अन्दर ही अन्दर पनपती ; लहलहा ती है ,

चूसती है, आत्मसम्मा न को , और मुझे खो खला बना ती है .

ये सां प है, जो हर पल मुझे अपने वि ष के ज़हर से डस रही है… मेरे सा रे रि श्ते बेका र, मेरी उम्मी दें नका र, मेरी इच्छा का तो को ई वजूद ही नहीं !




मेरी अभि ला षा एं न पा ने वा ले सपने हैं , ऐसे सपने जि नका हकी कत हो ना ना मुमकि न है…

मेरी खुद की वजूद की लड़ा ई मेरा मतलबी पन है !

………………….

पर असलि यत में, ये लड़ा ई मेरी अपनी बेचा रगी से है . इतनी हि म्मत का हो ना , की अपने खुद के नि र्णय के सा थ अटल खड़ी रह पा ऊँ ,

अपने ज़ि न्दगी के मा यने खुद तय करूँ, और उसको उसी तरह से जी ने की को शि श कर पा ऊँ.

अपनी रा ह अपने कंडी शंस पर तय करूँ , उस रा ह में को ई सहा रा मि ले तो उसे अपना ला ऊं

ज़ि न्दगी को अपने नज़रि ए से जी ने का प्रयो ग कर पा ऊँ और अगर ना का म हो भी गयी , हो ही गयी , तो उसकी सी ख संभल पा ऊँ .



By Shashi Shikha




1 view0 comments

Recent Posts

See All

By Sonal Lodha मौक़ा मिला है आज तो करने दे मुझे शुक्रिया तेरा ! उगते सूरज से शुरू हो , हर रोज़ नयी एक ज़िंदगी मेरी बढ़ते हर कदम पर साँसो पर करे जो पैरवीं मेरी ढलती शाम फिर जब नये सवेरें नयी उम्मीद इंत

By Arlene Nayak I walk across the countryside Looking o’er the everlasting fields As the melodious tunes of a robin Hit my longing ears. The river flows ever serenely Through the undergrowth The gay f

By Arlene Nayak The ocean breeze blows through my hair The sand stretches for miles before meeting the cool water. The waves crash against the shore The sun sets, painting the sky a beautiful orange a

bottom of page