स्त्री ही क्यों
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स्त्री ही क्यों

By Pallavi Jawalkar


हर वक्त स्त्री ही क्यों सहती है

हर वक्त स्त्री ही क्यों झुकती है

घर से रात को बाहर जाने की मनाही सिर्फ उसी पर लागू होती है

कोई भी काम करने से पहले इजाज़त मांगना, जैसे उसकी मजबूरी होती है

कपड़े पहनने का सलीका सिर्फ उसे ही सिखाया जाता है

दुपट्टा संभालकर चलने के लिए सिर्फ उसे ही कहा जाता है

क्या एक लड़की के लिए यह समाज कभी नहीं बदल सकता? या बदलना नहीं चाहता है।

क्या चरित्र, इज्जत, अस्मिता, सिर्फ एक स्त्री के ही पास होती है

जो बात बात पर उससे छीन ली जाती है, तो कभी लौटा दी जाती है



एक लड़की का बलात्कार, क्या सिर्फ लड़की का होता है?

नहीं, जब भी किसी लड़की का बलात्कार होता है,

साथ ही साथ हमारी संस्कृति का भी होता है

हमेशा स्त्री को ही सिखाया जाता है, उसका स्त्रीत्व ही असली धन है

तो क्या हम पुरुष को नहीं सिखा सकते, स्त्री का सम्मान ही उसके पुरुषत्व की नींव है

सवाल तो हमें स्वयं से करना चाहिए, हम वास्तव में बदलना चाहते हैं? या बदलने का सिर्फ किरदार अदा कर रहे हैं?


By Pallavi Jawalkar



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