By Naveen Kumar
यादों और रातों के दरम्यान एक बड़ा पेचीदा रिश्ता है। यूं तो यादें किसी ख़ास वक़्त की मोहताज नहीं होतीं मगर सूरज ढलने के बाद इन का असर कई दर्जे बढ़ जाता है। गीतकार शैलेन्द्र जी ने भी शायद इसी कारण ‘गाइड’ फ़िल्म का ये गीत लिखा होगा - 'दिन ढल जाए हाय, रात न जाए'
रातों में भी कुछ रातें ऐसी आती हैं जब यादें अपने शिखर पर होती हैं और नींद को अपनी परछाई के लिहाफ़ में पूरी तरह ढाँप लेती हैं । आप मन को शांत करने की लाख कोशिशें करते हैं मगर यादों का ज्वार-भाटा, एक के बाद एक आप की चेतना से ऐसे टकराता है कि करवटें बदल कर रात काटने के इलावा आप के पास और कोई चारा नहीं बचता। यादों के साथ हो रही इस मुसलसल जिद्द-ओ-जहद की हालत में रात गुज़ारने का एहसास वही समझ सकता है जिस ने इसे महसूस किया हो।
उस रात सोने के लिए मैं बिस्तर पर लेट चुका था, इस बात से बेख़बर कि मेरी भी वो पूरी रात इसी कश्मकश में गुज़रने वाली है।
सोने से पहले आदतन मैंने फ़ोन पर फेसबुक खोल लिया था। तेज़ी से स्क्रॉल करते हुए एक अपडेट दिखा और उंगलियां मानो थम सी गयीं।
'Kaavya has updated her cover photo'
कुछ देर के लिए सब भूल कर उस तस्वीर को निहारता रहा। वो तस्वीर हमारे कॉलेज के ज़माने की थी जब मेरे इलावा क्लास के सब लोग कॉलेज के आखिरी साल में डलहौज़ी घूमने गए थे (मैं क्यों नहीं जा पाया था वो एक अलग किस्सा है) । सफ़ेद रंग के जैकेट में वो बेहद खूबसूरत दिख रही थी। उस की आखों पर काला चश्मा था और चेहरे पर वही दिलकश मुस्कराहट थी। हवा के कारण, उस के बाल उड़ रहे थे और एक लट बिख़र के उस के माथे पे आ गिरी थी।
यादों के न जाने कितने बादल रात के आसमान पर छा चुके थे। वक़्त के सैंकड़ो गलियारे लाँघते हुए मन कॉलेज के दिनों में जा पहुँचा था जहाँ ज़िंदगी के सब से हसीन लम्हे गुज़ारे थे।
कुछ देर बाद जब होश आया तो मन किया कि तस्वीर के नीचे वो शेऱ लिख दूँ जो कॉलेज के पहले साल किसी लेक्चर में उस को देखते हुए लिखा था –
ज़िंदगी इसी मुक़ाम पे ठहर जाए तो अच्छा होगा
इस लम्हे में उम्र तमाम गुज़र जाए तो अच्छा होगा ।।
यूं तो एकतरफ़ा प्यार की दुनिया भी है हसीं मगर
तेरे आने से ये और सँवर जाए तो अच्छा होगा ।।
खैर यह लिखना तो मुमकिन नहीं था, तो सोचा कमसकम इतना तो लिख ही देता हूँ 'Nice pic dear Kaavya' । लिखना शुरु किया तो ख्याल आया "क़्या कर रहे हो ये? दिमाग ख़राब है क्या? वो क्या सोचेगी? कॉलेज के बाकी दोस्त क्या सोचेंगे? " अचानक से लिखा हुआ comment मिटा दिया। "मगर एक कमेंट से क्या ही आफत आ सकती है " ये सोच कर इस बार टाइप किया 'Nice pic Kaayva' पर send बटन press करने की हिम्मत इस बार भी नहीं जुटा पाया।
इन्हीं झमेलों से बचने के लिए कॉलेज खत्म होने के इतने सालों तक 'people you may know' section में उस की फ़ोटो को देख कर नज़रअंदाज़ करता रहा। मगर न जाने क्या सूझा, कुछ रोज़ पहले उस की सालगिरह वाले दिन friend-request भेज दी, जो कि कुछ ही घंटो में accept भी कर ली गई।
ज़ेहन में चल रही इस कश्मकश के बीच मैंने फ़ोन को तकिये के बाजू में रखा और आँखें बंद कर के खुद को यादों के उमड़ चुके सैलाब के हवाले कर दिया।
“काश उस के घरवाले हमारे रिश्ते के इतना खिलाफ़ न होते। काश मैंने उस को अपने माँ–बाप और मुझ में से किसी एक को चुनने की शर्त न रखी होती। काश मैंने उस दिन गुस्से में उस से रिश्ता ख़त्म न किया होता। काश हम मिल के कोई बीच का रास्ता निकाल लेते। काश मैं ज़िद्द छोड़ के उस की शादी से पहले उस को मना लेता। काश वो कभी एक बार मिले तो मैं अपनी गलती के लिए उस से माफ़ी मांग लूँ। काश .. “
यादें अपने शिखर पर आ चुकीं थीं और नींद को उन्होंने पूरी तरह से अपने लिहाफ़ में ले लिया था। दिल में खालीपन के अंधेरे के सिवा कुछ बचा था तो सिर्फ अफसोस ....
By Naveen Kumar
Good work
Beautifully written.
Very well crafted!!!
Good thoughts and nicely explained by real life example. Keep it up
Nice work