Sangharsh
- hashtagkalakar
- Mar 19, 2023
- 1 min read
By Shabeena Yaseen Khan
ये राख़ है
ये ख़ाक है
जला दूँ मैं
तो आग है
अकेली मेरी राह
पर जीतने की चाह
रातों को भी जागे
मेरी मुश्किलों से आगे
मेरी आँखों के ये सपने
मेरी मंज़िलों को भागे
मेरे लाहू का हर कतरा
मेरी आँख से बहा है
मेरे पैरों में ये छाले
मेरी मेहनत का आईना है
टूट के भिखरा
कई बार हौंसला है
मेरी माँ की थी दुआएं
जो हर बार ये जुड़ा है
तू रोक बार-बार
मैं वक्त सा बढूँगा
तू काट बार-बार
मैं जड़ सा उगूँगा
मेरे सपनो की आग
पानी से न बुझेगी
तूफ़ान में भी मैं
मशाल सा जलूँगा
तू तोड़ तो सही
मैं पहाड़ सा खड़ा हूँ
मेरे सपनो की ओर
मैं बाण सा चला हूँ
ये राख़ है
ये ख़ाक है
जला दूँ मैं
तो आग है
By Shabeena Yaseen Khan
Wow, so beautiful! 💜💜💜
Such a fantastic piece! absolutely loved it
Loved it!!!!
Beautiful
Inspirational 🔥