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By Dr Kavita Singh किताबें…. कुछ कही, कुछ अनकही! कुछ पढ़ीं, कुछ अनपढीं! कभी झाँकती सजी दीवारों से, कभी गुमनाम किताबघर के गलियारों में I कहीं धूल की परतों में सिसकती, कहीं शान से किसी बैठक में सजतीं I क

By Dr Kavita Singh ज़िंदगी कभी वक्त मिले तो अकेले मिल जाना.... ज़िंदा हूँ मैं भी, कभी गुफ़्तगू करने आ जाना ... ज़िंदगी कभी वक्त मिले तो अकेले मिल जाना... कुछ सवाल हैं जिनके जवाब शायद तू ही दे पाए, इंतज़ार

By Dr Kavita Singh कोरोना के कारण जीवन के सफ़र में बिछड़े साथियों को एक श्रद्धांजलि यूँ नहीं चले जाना था यूँ नहीं चले जाना था.... कुछ पल और ठहरना था, कुछ और घड़ी बतलाना था। यूँ नहीं चले जाना था.... अभी त

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