नवरस
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नवरस

By Anishka Majethia


प्रभु कि देन-ये नव रसो का समागम

जो बनाये मानव को मानव ता के सक्शम,


प्रथम रस है शृंगार जो है प्रेम प्रतीक

जो इसे अपनाले रहे प्रभु समीप,


दूजा रस है हास्य जो सबके भीतर होता

एक बार जो खुल के हँस ले सारे गम खोता,


तीसरा रस है रौद्र जब भी आये गुस्सा

जलता है वही मस्तिष्क पहले जिसके भीतर भरा हो भूसा,


फिर आता है करुण रस जो दर्शाए करुणा

करुना को आभूषण मानो तो बना दे सगुणा,





पाँचवा है बीभत्स रस जो दिखाए घृणा

आ गया अगर आचरण तो बना दे इंसान को घिनौना,


छटा रस है भयानक जैसे शिव का तांडव रूप

जिसे केवल पचा पाए महाकाली स्वरूप,


सातवाँ रस है वीर जो वीरता दर्शाए

जिनमें है ये रस वही अग्रणी बन पाए,


आँठवा रस है अद्भुत जो मनोरंजन करे सबका

जिसके स्वभाव में छलके ये रस वो पाए आशीर्वाद रब का,


अंत में आए शांत रस जो प्रतीकात्मक है शांति का

खुश्नसीब है वो जिस ने नहीं पाया रोग अशांति का,


ये हुए कुल नवरस जो हर मानव मे समाए

बस एक बार जो उभर कर आए सरल ये जीवन हो जाए !!!


By Anishka Majethia





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