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Life
By Mukul Goyal
सपने है बच्चो से,
उलझनें है बड़ो सी,
फिर भी खुद से अंजान है।
कोई चाहता दौलत,
तो कोई चाहता शौहरत,
किरदार फिर भी सबका इन्सान है।
कोई तरस रहा अपनों के लिए,
तो कोई डर रहा अपनों के बीच,
इसमें प्यार और एहसास का मतलब समझना ही
परिपक्वता की पहचान है।
कोई सीखता अपने नीड़ में,
तो कोई सीखता ज़िन्दगी की इस भीड़ में,
अपने सपनों को हासिल करना ही सबकी पहचान है ।
किसी को मिलते जख्म,
तो किसी को मिलते मरहम,
मंजिल तक पहुँचना ही राहगीर का काम है।
किसी को मिलता मकान कच्चा,
तो किसी को मिलती मीनार हसीं,
उनमें खिलखिलाकर हसना ही ज़िन्दगी का नाम है।
लेकिन अपने हिस्से का सबको मिलता,
किसी को ठोकर,
तो किसी को खोकर,
आतिश में खेलना फिर भी बुझदिलों का काम है।
By Mukul Goyal