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Maa
By Bhuvanesh Arya
देख खुद की उँगलियों को
याद आ जाते है वो पलभर
एक एक कदम चलवाया-उठवाया
थाम करके तुमने ज़िन्दगी भर।
हो आँख से ओझल तुम्हारे
बिलक्ति घबराती दौड़ती तुम ।
है प्रेम-त्याग कितना ओ माँ तुम में
अफसर बनाने दूर भेजती खुद तुम।
हर रास्ते की धूप हो तुम
जिसने तपाया है मुझको
और मंजिलो पर लेजा करके ही
छाँव बन लगाया गले को।
वो मिश्र सी घोल देती
हो तुम हर पकवान में कैसे
कैसे हो तुम ममता को सेती
वो अदभुत स्वाद प्यार कैसे।
देख तुम्हारे 'सुमन' व्यव्हार ही
आदर त्याग निष्काम स्वभाव ही
स्वाभिमान संवेदनशील संवाद ही
तुम ही मेरी ज़िन्दगी रूपी किताब भी।
जो आज बन पाया हूँ इस काबिल
कुछ खूबियां जो मुझमे भी है
है सब अंश मात्र ही तो तुम्हारा
सब रंग रूप विवेक तुझसे ही
By Bhuvanesh Arya