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29A
By Ashish Priyadarshi
हर बार पहुँच जाया करता हुँ मैं वहाँ।
हाँ वहीं, जहाँ अब सिर्फ ख़यालों में हीं जाना होता है।
हर याद, बार-बार चख़ पाता हुँ बन्द आँखों से,
फ़िर मालुम होता है, तन्हा भी मुस्कुरा सकता हुँ मैं।
जिस कमरे से बस निकला हुँ अभी, बरसों से वहाँ मैं गया नहीं।
जो गलियाँ अब तक याद हैं, खो जाना उनमें भी स्वाद है।
कुछ बातें जो रह गईं थीं तब, हैं कहानीयों तक पहुँच गईं।
वो लोग जो थे तब अनजाने, रिश्तों में हैं अब बदल गए...
By Ashish Priyadarshi