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बेल सी बिटिया

By Bhagat Singh


नौ महीनो लहू से सींचने पर ,

दिखी थी अंकुरित सी पहली झलक

दबी सी , चिपकी सी ,जब उसने झपकी थी पलक

दुनिया में आने पर सब रोते है , वो भी रोई थी

उसने भी रोकर इस जहाँ में ,अपनी पहचान बोई थी

हाथो को मिला,सिमटती सी , सिसकती सी ,बेल सी बिटिया


पहली बार जो देखा तो , ऐसी थी के जैसे ,

बचपन में हम बुढिया के बाल (cotton candy)खाया करते थे

वो बाल जो नर्म थे और मुँह में घुल जाया करते थे

हाथो के बस छूने से वो , कही हवा में ना घुल जाए

भगीरथी सी मासूम वो,

जिसको देखने भर से ही पाप भी धुल जाए

शहद सी पालने में पलटती हुई ,

नर्म सी , नाजुक सी ,बेल सी बिटिया


म-म ,प-प दो शब्दो से करती है बात ,

दिखने लगे है आगे के दो खरगोशी दाँत

जमीन पर सरकते घुटने , अब हवा में दिखते है

एक ही जगह पर , अब तो पैर भी ना टिकते है

सँभल रही है , चहक रही है , बढती हुई , बेल सी बिटिया


रस्सी के ऊपर से गिलहरी सी

उछलती-कूदती , कूदती-उछलती

खानो में पत्थर के टुकडे सरका ,पलटती , पाले बदलती

पाँच कंकरो को उछालने का, खिसकाने का अजब सा हुनर

माथे के थोडा ऊपर , कानो से सटकर चलती चूनर

आँख के नमक को , मुँह की मिठास में बदलती ,

चलती , उछलती , बेल सी बिटिया


सात फेरो के मकाँ में बंद होकर ,

अपनी ही छवि को भूल जाती है

माँ-बाप के अभिमान पर आँच आए तो , अस्मत झूल जाती है

अपनो के घर में पलती है , बेगानो के घर में जा जलती है ,

गल जाती है आहुति दे , क्या इसमे उसकी गलती है

मन में सारे राज छुपा ,गुम सी , गुमनाम सी , बेल सी बिटिया





सपनो के महल जब चूर हुए ,

नाकामी ने तंज कसे और अपने भी कुछ दूर हुए

बिखरे सपनो को फिर से समेटा , सब तंजो को करके अनदेखा

कोई तंज कसे तो कसने दो , कोई आज हँसे तो हँसने दो,

शिक्षा के जब पंख मिलेंगे , उडी – उडी ये डोलेगी

बाज की आँख से आँख मिला , एक दिन ये चिडिया बोलेगी

गिरती पडती ,फिर भी उठती , चलती जाती ,

बढती जाती , बेल सी बिटिया


वो अपने दिन के सोने , और रात के रोने को , क्या याद रखेगी

वो खाट से बँधे , माँ की चुन्नी के हिंडोले को क्या याद रखेगी

वो अजब गजब चेहरे बनाते ,बहलाते ,फुसलाते

कंधो का तकिया बना सुलाते ,औलाद के लिए तोतला बन जाते

वो उन तोतली आवाजो के छंदो को क्या याद रखेगी

औरो की अमानत बनी हुई जो ,

बढती हुई, बेल सी बिटिया


गर भूल भी गई तो याद आएगा सब

वो बेटी एक दिन माँ में तब्दील होगी जब

खुद की बेटी में वो खुद को कभी तो देख पाएगी

माँ के स्वरूप में एक न्यारी सी पहचान बनाएगी

बीज को उपजा कर , जननी का अवतार बनी ,

जो कभी थी खुद , बेल सी बिटिया , बेल सी बिटिया॥


By Bhagat Singh




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