चिड़िया और बदलाव
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चिड़िया और बदलाव

By Bhagat Singh


तपती एक दुपहरी गर्मियों की छुट्टी थी

खाली थी गुल्लक खाली हाथ की मुट्ठी थी

चलो-चलो कुछ तो बनाते है

रबर की ट्यूब और लकड़ी ही काट लाते है

बातों-बातों में बन जाती है गुलेल

अब यहीं होगा खिलौना इसी से खेलेंगे खेल

कंचा लगा लिया रबर में खींचा और कहीं भी मार दिया

कितने ही कंचो से खाली ही हवा में वार किया

पेड़ पर चढ़े , लटके , उतरे पकड़ पेड़ की टहनियां

उड़कर तब तक, उसी पेड़ पर आ बैठी एक चिड़िया

चिड़ियाँ पर ऐसे ही किया वार

गये पड़ी जमीं पर मान गई हार

अरे! अरे! ये क्या कर दिया

अनजाने में एक जिंदगी को हर लिया

बच्चे थे हम थे नासमझ

पहले मार दिया अब करने लगे सत्कार

कोई झाड़ी से बेर लाया,किसी ने चोंच में डाली बूंदे चार

पर अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत

इस दुनिया को छोड़ के चिड़ियाँ हो गई खुद ही खेत

गई तो गई पर

इसकी जिंदगी को बेकार न होने देंगे

याद में ये रहेगी, इसे खुशनुमा विदाई देंगे

अंतिम विदाई ही सही, पर शान से देंगे

इस पाप का बोझ अपने सिर ना लेंगे

खोदा एक गड्ढा, बेल के पत्तो, फूलो से समेटा चिड़िया को

आँखों में रेत ना चला जाए इसलिए

रेशमी रुमाल से लपेटा चिड़िया को

सब अपने-अपने हिस्से की मिट्टी

चिड़िया को दे उपहार चले

जो पाप हुआ अनजाने में,

थे उसका कर्ज उतार चले

जाओ-जाओ, पानी और मिट्टी लाओ

हम इसकी मजार बनाएँगे

हर अवसर पर याद में इसकी,

हम सब फूल चढ़ाएँगे

बन गई कच्ची मजार, चढ़ गए फूल

बड़े क्या हुए, हम सब गए भूल

पर भूली सी इस याद ने,

मीठी सी चिकोटी काट ही दी

जमी हुई धूल की धुंधली बदली छांट ही दी

दो जमानों का अंतर,




जिंदगी का जंतर-मंतर देख ही लिया

एक वो जमाना था,

जब चिड़िया के मरने पर भी आँसू झरते थे

आज भी लोग मरते है, तब भी लोग मरते थे

पर, अब आँसुओं की माला के मोती ना दिखते है

मोतियों की जगह, बस काँच दिखते है

जो टूटते है, और चुभते है

जो मजबूर करते है,

आँख बंद कर अपने में मशगूल होने को

आज पाप किया,

और कल गंगा जाकर पाप धोने को॥


By Bhagat Singh




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