By preethi bansal
कुदरत का क़र्ज़ चुकाना है!
काटे थे पेड़ कभी जो हमने,
आज फिर से उन्हें लगाना है!
प्रदूषण जो हमने फ़ैलाया,
उसे भी अब कम करते जाना है!
भूले जो कहीं हम अपनी संस्कृति,
उसे फिर से जीवन में लाना है!
लिया जो हमने प्रकृति से इतना,
उसका अब क़र्ज़ चुकाना है!
जल्दी से अब सबको ये,
समझना और समझाना है!
कुदरत से करना ना खिलवाड़,
खुदको बचना और इसे भी बचाना है!
बढ़ते इस कहर को अब,
मिलकर सबको रुकवाना है!
फिर से जीने की नयी लहर,
जीवन में सबके लाना है!
काटे थे पेड़ कभी जो हमने,
आज फिर से उन्हें लगाना है!
By preethi bansal