By Preethi Bansal
आज पेड़ भी जैसे अकड़ा था,
कहता मिट्टी ने इसे जकड़ा था,
नहीं होता अगर वह मिट्टी में,
तो घूमता आजाद शृष्टि में!
मिट्टी ने भी बतलाया उसको अपना गुमान,
नहीं होती अगर मैं साथ तो होता तू भी बेजान,
क्या भूल बैठे हो तुम मुझसे अपनी पहचान,
मुझसे ही तो मिलते तुमको पानी और प्राण!
फिर क्यों आज हो गए हो तुम सच्चाई से अनजान,
अकेले रहकर कौन सी आजादी की तुम करते हो मांग,
क्या करोगे ऐसी आजादी का तुम जो हो बेजान ,
जिसमे सब होकर भी नहीं होंगे तुम्हारे प्राण?
By Preethi Bansal