By Aditya Ranjan
खोजें यद्धु नीती हज़ार मिल सके ऩा कोई,
बंजर मैद़ान पर दो सिप़ाही ज्ञ़ान बीज बोई।
“यद्धु जीते के यही दो रीत!” चिल्ल़ाए अनन्त गगन अप़ार, “धरती फूट ज़ाए करो ऐस़ा प्रह़ार य़ा शत्रु यश टूट ज़ाए झेल ज़ाओ ऐसी कट़ार”
हल्के ह़ाथ से जंग जीती ज़ाती नहीं,
हल्के मूल से विजय आ प़ाती नहीं।
By Aditya Ranjan