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Hindi Poems
Updated: Sep 21, 2022
By Sanjay Kumar Upadhyay
जो खुद से निराकार है, वो सत्य पे सवार है,
तुम कहते बार बार हो, वो करता एक बार है,
लो छू अगर जो छू सको, वो तेरा ही आकार है,
मदमस्त है वो है मगन, वो इन्द्रियों के पार है..!!
आधार क्या बनाओगे, जो खुद ही निराधार है,
वो जंगलों में घूमता, वो पर्वतों के पार है,
विराजती हैं गंगा सर में, पर वो पार्वती का प्यार है,
जो नेत्र इसके खुल गये, तो सर्वत्र हाहाकार है..!!
वो मिल गया हवाओं में, जो सावनों के साथ है,
यूं व्यर्थ ना करो इन्हें, वो भेजता यूं प्यार है,
खिल गयी कली कली, ये उसका चमत्कार है,
वो ज़िन्दगी खिलायेगा, क्यूं सोचता बेकार है,
ले विष प्रचंड धारता , वो नीलकंठ तब हुआ,
असुर अधम सभी मरे, घमंड चूर तब हुआ,
जो तांडवों पे नाचता, तो सारा लोक कांपता,
स्थिर कोई न रह सका ,बस त्राहिमाम याचता..!!
वो चंद्रमा सा शांत है, वो क्षीर सा अशांत है,
यूं कांप जाती है धरा, जो खींचता वो बांण है,
उदारता मै क्या कहूं, प्रसन्नचित्त जब हुआ,
सर्वस्व दान कर दिया, जो लीन भक्ति में हुआ..!!
कहीं भी वो विचारता, हैं तीनों लोक रास्ता,
जो पी के विष है नाचता, तो सर्प सा वो कांपता,
घमंड ना किया कभी, जो शक्तियां वो धारता,
बस पापियों को मारता, वो शत्रुओं को तारता..!!
जो चाहते हो पा सको, तो छोड़ो जो व्यापार है,
है दान की महानता, बस कर्म ही महान है,
वो तुझको ही है ढूंढता, क्यूं व्यर्थ परेशान है,
तू इन्द्रियों को जीत ले, तो शम्भु तेरा यार है..
वो सत्य पे सवार है, वो सत्य पे सवार है..!!
By Sanjay Kumar Upadhyay