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Ek Tarfa Ishq

By Karan Bardia


मुझसे तुझसे इश्क है बेपनाह,

तुझे भी मुझसे इश्क हो ये जरूरी तो नहीं,

तेरी फ़िक्र है मेरे जहाँ में हर लम्हा,

तुझे भी मेरी फ़िक्र हो ऐसा ज़ोरोरी तो नहीं,

मेरे हर सांस में ज़िक्र है तेरा,

तेरे मन में मेरा एक ज़िक्र हो ऐसा ज़ोरोरी तो नहीं,

सोचा हूं कभी की छोड दूं ये सब और भूल जहां तुझे,

पर मेरा दिल हमें दिमाग की बात सुने ऐसा जरूरी तो नहीं।


मेरे दोस्तों का तुझे देख कर मुझे चिढाना,

तेरे पास आने से भाभी भाभी चिलाना,

इस तरह तेरे दोस्त भी कभी मेरा ज़िक्र करें ऐसा ज़रूरी तो नहीं,

तुझसे मिलने के लिए कहीं से भी और कहीं पर भी चले आना,

फिर चाहे कुछ भी हो जाए पर तुझसे मिल कर जाना,

तू भी कभी मेरे करीब आने को एक कदम बढ़ाए ऐसा जरूरी तो नहीं,

अब तो बस आशिकी से मुंह मोड लेना चाहता हूं,

इस सब झमेले को पीछे छोड़ देना चाहता हूं,

पर हम जैसा हम चाहते हैं वैसा हो ऐसा जरूरी तो नहीं।



तुझे एक झलक देखने के लिए यूं घंटो रुक जाना,

तुझे भी कभी मुझसे बात करने की इच्छा हो ऐसी जरूरत तो नहीं,

तेरे हर इच्छा को पूरी करने के लिए अपनी जान लगाना,

जररत पढ़े तो पूरी दुनिया से तेरे लिए लाड जाना,

तुझे भी कभी मेरी क़द्र करने की इच्छा हो ऐसा ज़रूरी तो नहीं,

तुझे कभी ज़रुरत हो तो तेरे पास में जाना,

तू जहान बुलाए वहा वक्त पे आ जाना,

तेरे आने के इंतजार में वो बेचानी भरे पल बिटाना,

तुझे भी कभी मेरे ख्याल हो ऐसा जरूरी तो नहीं,

कभी कभी यूं ही ख्यालों में सोचता हूं की क्या मिला मुझे एक तरफा आशिकी से,

क्या पाया मैंने इस शिदत भारी इबादत से,

पर फिर समाज आया की हर रास्ते की कोई मंजिल हो ऐसा जरूरी तो नहीं।


By Karan Bardia




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