By Vivek Upadhyay
सीने से लगाकर सुन वो धड़कन जो हर रोज़ तुझसे मिलने की ज़िद्द करती है,
तू हो या ना हो तेरी बातें हर रोज़ करती है ,
क्या एहसास क्या अल्फ़ाज़ तू हर दम या तेरी याद ,
हो दिन या रात , तुझसे जुडी हर एक बात,
मेरे अश्कों के समंदर में बह जाती है ,
कश्ती बन के तेरे नाम से बानी कागज़ की नाव ,
तेरे बारे में लिखना , तेरे रास्तों से गुज़ारना ,
तुझसे शिकायत तुझसे ही मोहब्बत ,
तुझसे गुफ्तगू तुझसे ही बगावत ,
इस कदर तू मुझमे बसती है की तेरे बिन मेरी ना कोई हस्ती है ,
सोचता हूँ रोज़ तू है कौन , मैं बोलता रहता हूँ और तू मौन ,
आज ही मिटा दूंगा तेरा हर नाम और निशान ,
कर रखा है तूने इस कदर परेशान ,
दिल कहता है अरे नादान , है वो अक्स तेरा ना कोई मेहमान ,
वो तेरी हसीं महफ़िल और तू उसका लुटा हुआ कद्रदान ,
वोतेराहसींसफरऔरतूमंज़िलखोजताएकअनजान।
By Vivek Upadhyay