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Dhool

By Sanchita


कभीकिवाड़ोंकीकुंडीमें,

तोकभीबाबाकीआरामकुर्सीपर,

तेरीमांकीसलाइयोंपर,

तोकभीदोस्तोंकीतस्वीरोंपर,

उनचुपकेसेदिएतोहफोंमें,

मैंबैठतुझेनिहारतीरही!

तूअनदेखाकरतारहा।


तेरेऑफिसकीफाइलोंपर,

कंप्यूटरकेस्क्रीनपर,

कभीमेजकीदराज़में,

तेरेपीछेभागतेहुए-

गाड़ीकेशीशोंपर,

मैंठहरतीरही!

तूहटातारहा।





मैंतोवहीधूलहूं,

तुच्छसी, निरासी,

कभीभीगतीरही, कभीसुखतीरही,

तूनेकभीपैरोंसेउठा,

माथेपरलगायाहै

औरकभीहोठोंसेफूक,

हाथोंसेझाड़ाहै

मैंहमेशावहीथी!

तेरानजरियाबदलतारहा

तूबदलतेपरिवेशकेसाथ,

अपनीपहचानबदलतारहा

परमैंवहीधूलहूं।

हूंअकिंचन!

किंतुसर्वत्रहैवर्चस्वमेरा।


By Sanchita




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