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Kyun?
By Dr.Apoorva Kumar Seth
जब सब कुछ हो ही रहा है,
सही गलत् कुछ है ही नहीं,
हर कोई दौड़ भी रहा है,
दिशा होते हुए भी मजि़ंल का किसी को अदांज़ा भी नहीं,
क्यों हूं मैं यहां, जब हम में से किसी की, किसी को ज़रूरत् ही नहीं,
क्या हूं मैं, और क्या है ये दुनिया, इसका क्या मक्सद् है, तुझे मुझे, हम सब को कहां लिए जा रही है ये,
सब खोए हुए हैं, चल फि़र भी रहे, क्या पता किस राह पे,
न कुछ अच्छा, न बुरा है कुुछ, न ही कोई सोच, और न ही कोई ख़ुद में पूरा है,
हम हों न हो, वासतव़ में, क्या फ़र्क है
कौन जाने, हम किस राह, क्यों, कब तक, क्या क्या करते चले जा रहे हैं,
क्या शुरुआत, क्या अंत,
कौनहूंमैं, क्याहूंमैं, कौनहैंयेसब, औरक्याहैं
By Dr.Apoorva Kumar Seth