By K. Swati Rao
वैसे तो आसान नहीं जिंदगी किसी के लिए भी जीने में,
पूछ उनसे जो लिए फिरते हैं कर का बोझ अपने सीने में।
ना दिन को सुकून ना रातों को चैन मिलती है सोने में,
पूछ उनसे जो लिए फिरते हैं कर का बोझ अपने सीने में।
असल की क्या बात करे जनाब कट जाती है तमाम उम्र सिर्फ बयाज देने में,
पूछ उनसे जो लिए फिरते हैं कर का बोझ अपने सीने में।
खुशी एक पल की नहीं चेहरे में, पूछ क्या दर्द है बनावटी चेहरे को लेकर जीने में,
पूछ उनसे जो लिए फिरते हैं कर का बोझ अपने सीने में।
बिखर जाते हैं परिवार मिट जाती हैं हस्तियाँ खुद को इस दलदल से बाहर लाने में,
पूछ उनसे जो लिए फिरते हैं कर का बोझ अपने सीने में।
गलत निकले सब अंदाज़े हमारे, के दिन आए अच्छे हमारे... के तंख्वा
आने से पहले चले आते हैं लेनदार हमारे।
जाने कब तक चलेगा ये सिलसिला,
नौकरी होते हुए लग रहा है,
बैंकों के लिए काम के लिए करते हैं।
अच्छे दिनों की तमन्ना में,
कई साल गुज़रते हैं।
पूछ उनसे जिनको न रातों का चैन,
न दिन का सुकून है,
छत तो है मगर नींद नहीं है,
एक बोझ उतारने की तमन्ना में,
न जाने कितने कड़े दिन काटते हैं।
पूछ उनसे जो लिए फिरते हैं कर का बोझ,
अपने सीने में वो कितना दर्द सहते हैं,
क्या सोच कर हर सुबह उठते हैं,
क्या ख्वाब देख कर सो जाते हैं।"
वैसे तो आसान नहीं जिंदगी किसी के लिए भी जीने में,
पूछ उनसे जो लिए फिरते हैं कर का बोझ अपने सीने में।
By K. Swati Rao