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आईना

By Sarika Vishal Dabhade


कोशिश की कुछ आईना देखने दिखाने की ,

आज कुछ गुज़रे कल को टटोला,

लिखने के लिए जूझा बहुत शब्दों से,

पर शब्दों का मिलना अभी बाकी है..


आज की कलम से..

कुछ इंसानों में भगवान दिखे

कुछ में पैसे नोचते हैवान

इन भगवान का दर्जा लिए बैठे हैवानों का

इंसान बनना शायद अभी बाकी है..


खुले आम सांस लेते थे सभी..

हवा के पैसे देते आज देखा है..

गिरते देखी इंसानियत, कालाबाज़ारी के नाम पर..

इन इंसानो में इंसानियत का आना

शायद अभी बाकी है..


एक तीखा कटाक्ष -

बचपन में केंद्र / राज्य / कांग्रेस / भाजपा ऐसी सरकार सुनी थी...

नाम वाली मोदी सरकार कुछ सालों से सुनी है,

वापस मोदी सरकार से केंद्र सरकार का सफर

लोकतंत्र में तय होना शायद अभी बाकी है।


दिल की कलम से

समझदारी का शायद कुछ गुरुर हो गया था हमें ..

पर "था" और "है" का फर्क..

किसी अपने को खोकर समझ आया,

न जाने और किन किन शब्दों के मायने समझना अभी बाकी है ।








जिस देश में सभी ने मिलकर लड़ी आज़ादी की लडा़ई,

वहाँ क्यों है आज, धर्म की ऐसी खाई,

धर्म की इस राजनीति में,

विकास का मुद्दा आना अभी बाकी है ।


सत्ता की इस बाज़ारी में..

नेता बिकते देखना आज आम है ..

एक वोट के लिए ही सही,

खुद की सरकार गिरने देने वाला..

ईमानदार अटल जी जैसा कोई..

नेता आना अभी बाकी है ।


राजनीति में तो रातोंरात बात कुछ यूँ पलटती है..

कल तक जो तख्त पर विद्यमान था..

आज उसे "भूतपूर्व" का ही सम्मान है..

रातोंरात पलटने वाले इस राजनीति में

संविधान के नियम ज़रा बदलना..

शायद अभी बाकी है ।


Education के नाम पर पैसों का बाज़ार है..

Degree की इस दौड़ में Students सिर्फ औज़ार हैं..

पैसों और Position की इस रेस में..

मूल्यों का आना अभी बाकी है ।


गणतंत्र का चौथा स्तंभ है, ये "Media"

जिसको अभी जकड़ी है, TRP की बेड़ियाँ..

TRP की रेस छोड़ सच्चाई का आईना

Media ने दिखाना शायद अभी बाकी है ।



By Sarika Vishal Dabhade





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