मैं अपनी ही मस्ती में रहने लगा हूं
- Hashtag Kalakar
- Jan 11
- 1 min read
Updated: Jul 16
By Vijay Dilip Patil
गहरी सी बातें मैं अपने ही अंदाज में कहने लगा हूं
मैं अपनी ही मस्ती में रहने लगा हूं
किसी ऊंचे पर्वत की सतह पर बड़ा सा तालाब हूं मैं
एक सुराग है जैसे छोटा सा मेरे मन के भीतर
शांत झरने सा बहने लगा हूं
मैं अपनी ही मस्ती में रहने लगा हूं
गिर जाता था हर दूसरी पायदान पर थोड़ा-थोड़ा संभालने लगा हूं
अजब गजब है दस्तूर दुनिया के
मैं किसी और को नहीं समझाता अब खुद ही समझने लगा हूं
मैं अपनी ही मस्ती में रहने लगा हूं
ओ बर्फीले पहाड़ों को नदी का स्तर बढ़ाते देख
न जाने मैं भी क्यों मोम सा पिघलने लगा हूं
यह दुनिया चलती है अपने हिसाब से
मैं भी अपने तरीके से चलने लगा हूं
मैं अपनी ही मस्ती में रहने लगा हूं
यह जज्बा ही है जो रेगिस्तान में गांव बनता है
मैं भी अपने अंदर के हौसले की लो बनाकर जलने लगा हूं
मैं अपने ही मस्ती में रहने लगा हूं
सूरज की तरह सुबह को उगने लगा हूं
शाम को ढलने लगा हूं
रात से बातें करता हूं
चांद के साथ टहलने लगा हूं
मैं भी अपने ही मस्ती में रहने लगा हूं
मुसाफिर है हर कोई यहां कुछ पलों का
यह हर लम्हा जिंदगी है
मैं जीता हूं हर पल ऐसे मुकम्मल होकर
जैसे अगले पल मरने लगा हूं
मैं अपनी ही मस्ती में रहने लगा हूं
By Vijay Dilip Patil

Comments