By Shraddha
जब क्षुब्ध थी पावन धरा मुग्लों के अत्याचार से,
देख कर खून खौलता था हैवानियत व्यवहार से,
एक प्यास थी सबके दिलों में सिंह के आवाज़ की,
तृप्त किया माँ को शिवा ने नीव रख स्वराज की।।
ध्वज लिए वो हाथ में लिपट गये थे देश से,
संघर्ष का पथ था मगर, प्रेम था स्वदेश से,
उम्र से नादान थे पर शौर्य में अभिराम वो,
देश भक्ति उठ जाए सुन ले अगर तू नाम वो।।
हृदय में पाला सदा माँ के अपार कर्ज को,
सैकड़ों विघ्नों के बाद भी भूले कभी न फर्ज को,
चीखें लहू की बूंद भी भूले कभी फिर भी न ले विश्राम वो,
अरे! कायरता क्या चीज़ है जाने न कायर नाम वो।।
त्यागकर सारे सुखों को लगन थी बस जीत की,
सबके दिलों माँ के लिए चहकते हुए से गीत की,
माँ के लिए जब मिट गये गुजरी कभी थी शाम वो,
अपनी अंतिम श्वास तक भूले न हम एहसान वो।।
By Shraddha
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