By Priyanka Gupta
असमानता नहीं महिलाओं की पुरुषों पर निर्भरता वास्तविक दुर्भाग्य है
महिला और पुरुष के मध्य भेद प्रकृति प्रदत्त है,लेकिन भेदभाव समाज की देन है।किसी एक लिंग को दूसरे पर वरीयता देना और लिंग के आधार पर दायरे सीमित करना ,कुछ प्रतिबन्ध लगाना ,भिन्न व्यवहार करना लैंगिक भेदभाव कहलाता है । इस भेदभाव का सामना महिला और पुरुष दोनों ही करते हैं ;लेकिन यह भेदभाव महिलाओं के व्यक्तित्व और जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
हम हमेशा लैंगिक असमानता की तो बात करते हैं। लेकिन हम इस पर कभी ध्यान नहीं देते कि यह क्यों मौजूद है? लैंगिक असमानता ऐतिहासिक काल से है, वास्तव में हम यह नहीं कह सकते कि यह कब शुरू हुई ? लेकिन एक बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि असमानता निर्भरता से शुरू हुई। महिलाएं पुरुषों पर निर्भर हैं, चाहे यह निर्भरता वित्तीय हो या राजनीतिक हो या सामाजिक हो या फिर नैतिक हो।
इस निर्भरता की शुरुआत घर को महिलाओं का एक मात्र कार्यस्थल घोषित करने से हुई । घर से बाहर का क्षेत्र महिलाओं के लिए या तो वर्जित था या बहुत से प्रतिबंधों के साथ वह बाहर जाती थी । चन्द्रगुप्त की पुत्री प्रभावती गुप्त जब विधवा हो गयी थी तो अपने पिता के संरक्षण में ही उसने वाकाटक राज्य का शासन संचालित किया था ।
महिलाओं द्वारा घर को अपना कार्यक्षेत्र स्वीकार भी कर लिया गया था लेकिन महिला द्वारा किये जा रहे घर के कार्यों को पुरुष द्वारा किये जाने वाले कार्यों से हमेशा से ही कमतर माना गया । जैसे पुरुष श्रेष्ठ था, वैसे ही उसकी बाहरी दुनिया और उसके द्वारा किये जाने वाले कार्य भी श्रेष्ठ थे। इतना ही नहीं स्त्रीको पुरुष के कार्यक्षेत्र में प्रवेश करने की इज़ाज़त नहीं थी। चारों आश्रम पुरुष के लिए ही थे ;स्त्री के लिए तो केवल गृहस्थाश्रम था । स्त्री वेदों का अध्ययन नहीं कर सकती थी ;यहाँ तक कि स्त्री तो मोक्ष की भी अधिकारी नहीं थी ।
घर से बाहर की दुनिया के कार्यों के लिए स्त्री पूर्णरूपेण पुरुष पर निर्भर हो गयी थी । निर्भरता श्रेष्ठता को जन्म देती है और निर्भरता श्रेष्ठता को बढ़ाती है । अपने पर निर्भर स्त्री से पुरुष स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगा और अनवरत स्त्री की निर्भरता बढ़ाने वाले नियम -कायदे बनाने लगा ।
घर से बाहर की दुनिया में महिला की पहुंच पुरुष द्वारा बहुत सीमित कर दी गई और इस तरह महिलाएं अपनी आजीविका के लिए भी पूरी तरह से पुरुषों पर निर्भर हो गईं।
शिक्षा तक उसकी पहुंच सीमित थी।
मनु ने तो लिखा भी है कि शास्त्रों का अध्ययन ने करने के कारण महिलाओं की बुद्धि विकसित नहीं होती है ;इसीलिए महिलाओं को हमेशा पिता ,भाई ,पति और पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए ।शिक्षा की कमी के कारण उसने खुद को निर्णय लेने में असमर्थ पाया। निर्णय लेने के लिए, हमारे पास जानकारी और आँकड़े होने आवश्यक हैं जो कि स्त्री के पास शिक्षा के अभाव के कारण अनुपलब्ध थे ।
निर्भरता एक को श्रेष्ठ और निश्चित रूप से दूसरे को हीन बनाती है। जो श्रेष्ठ है ,वह हमेशा अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिए और बनाये रखने के लिए शक्ति और अधिकार चाहता है। अपनी श्रेष्ठता बनाये रखने के लिए पितृसत्ता द्वारा स्त्री द्वारा लिए जाने वाले किसी भी निर्णय को स्वीकार नहीं किया जाता था।इस अस्वीकृति से स्त्रियों का आत्मविश्वास और स्वाभिमान पूरी तरह से टूट गया था।
फिर उसने स्वयं को पुरुष की तुलना में हीन मान लिया था । एक हीन के साथ उसी तरह से व्यवहार नहीं किया जा सकता जैसा कि एक श्रेष्ठ के साथ किया जाता है। महिलाओं की पुरुष पर निर्भरता ही उसकी हीनता का कारण थी और अपनी श्रेष्ठता बनाये रखने के लिए पुरुष यह निर्भरता बनाये रखना चाहता था और आज भी यही चाहता है ।
अब जब कोई भी स्त्री आत्मनिर्भर होने की कोशिश करती है, तो यह पितृसत्तात्मक समाज उसे अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए रोकना चाहता है। क्योंकि वह यह बात अच्छी तरह जानता है कि एक बार निर्भरता समाप्त हो जाने पर, यह श्रेष्ठता का भ्रम हमेशा -हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा।
निर्भरता कोई बुरी चीज नहीं है लेकिन यह परस्पर निर्भरता होनी चाहिए। इसे इस तरह सीमित किया जाना चाहिए कि कोई स्वयं को श्रेष्ठ और दूसरे को हीन न समझे।
महिलाओं को पुरुषों पर निर्भरता कम करने के लिए अधिक अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। एक बार महिलाएं आत्मनिर्भर हो जाएंगी, फिर उन्हें पुरुषों से कमतर नहीं माना जाएगा। तब महिलाओं के साथ असमान व्यवहार करने का कोई कारण भी नहीं होगा।
By Priyanka Gupta
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