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Creative Rachnaye

By Rehana Fatima


काहे पुकारे बार बार

सुरमयी आँखियों की आवाज़

गोरी अनजान सुन रही

सजना दिल की तेरी हर बात


जान रही मनवा की बतिया

बीत गयी जाग जाग हर रतिया

ऐसी भी क्या प्रथा मन भाई

ओ साँवरिया

काहे अँखियाँ भिगोई


रोती है गोरी

सूनी आँखियों से है कहती

ओ हरजाई

काहे मानवा में आस लगाई


टूट गयी तारो की लड़ियाँ

बीत गयी जाग जाग हर रतिया

किसको मन की व्यथा बताऊं

गीत विरह का अब

किसे सुनाऊँ


पीर वीणा की भीतर ही

स्वयं ही रेशम हृदय बुनूँ

आलिंगन का सहज

वो चुम्बन

सांझ मन, नयन भर आयी


अधरों से न मिलन पिय की

स्वांसों का ये बंधन अद्भुत

कैसी यह अगन लगाई

भोर सांझ की

खाली फिर यह आयी


सुद-बुद खो अंतर्मन जूझ रहा

मर्यादा श्रृंगार न सूझ रहा

शब्द,रूप,रस,गंध पिया की

स्मृति का आंगन महकाई

ओ हरजाई

काहे अँखियाँ भिगोई


मीत मिलन विरह स्वीकारा

अधूरा-पूर्ण,सब प्रेम कर डाला

कठिन विधा ये प्रेम विरह

पग पग उत्साह न कम हुआ


कण कण में है मीत बसा

प्रेम अथाह ये

व्यर्थ न हुआ

कैसी ये रुत आयी

ओ सांवरिया

काहे रीत ये

अधुरी निभाई


उलझ गई लटों की बेला

बीत गयी जाग जाग हर रतिया

नई नवेली

प्रीत लगन

आंसुओं का संयम चयन

बहती धारा पिया मगन

मन की काया सूना गगन


सोचे सजनिया तट किनारे

तक तक सारी राह निहारे

काहे मनवा में आस लगाई

ओ साँवरिया

काहे अँखियाँ भिगोई।

हरियाली

~~~


पुर सुकूनी का आलम है

मोहब्बत का भी एहसास है

पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा

हर सब्ज़ डाली-डाली है

रूहे ज़मी कुछ और नही

माँ धरती की ममता हरियाली है।





खुशियों का है रंग हरा

हरा भरा सा आंगन है

बहारों का है आनंद हरा

पतझड़ मे भी सावन है


हरियाली जंगल की अंगड़ाई

खुशियों का भी एहसास दिलाई

बाग़ बग़ीचे के भीतर

तितली जैसी सखियाँ आयी

भवरें भी करते हैं गुंजन

जब हरियाली लेती अंगड़ाई


फूलो में गीतों का मेला

फसलों में हरियाली लह लहाई

हर किसान की भूख मिटा दे

हरियाली वो फसल उगा दे


हर पत्ता हर डाली झूमे

हरियाली जब इनमे घूमे

इंसा को यह एहसास दिलाती

बिन हरियाली जैसे दुल्हन ना भाती(no attraction)


है हरियाली ही सबका सहारा

इस बिन अब ना किसी का गुजारा

पूर्वजो का आशीर्वाद हरियाली

नई नस्ल को सौगात हरियाली

हर मौसम का ताज हरियाली

खुशियों का एहसास हरियाली


हरियाली है जीवन का पानी

बिन हरियाली जीवन फानी।

रूहे ज़मी कुछ और नही है

खुदा की नेमत है हरियाली

ज़न्नत का हर ख़्वाब हरियाली

हर ज़िन्द को रहमत हरियाली।


आओ ऐसा कुछ काम करें

कुछ पल हरियाली के नाम करें

कुछ पेड़ हम-तुम लगाएं

पर्यावरण को स्वच्छ बनाएं


समझना और अब समझाना है

हरियाली से ही, सबको सब पाना है

एक नियत, एक मानवता का काम करें

आओ हरियाली पृथ्वी के नाम करें...

खुल गया वज़ूद,खुली किताब सा

वो पढ़ रहा अब मुझे


हर पन्ने में,है हिसाब सा

हाल दिख रहा सब उसे


लबो पे हया,है मिज़ाज़ सा

हैरां कर रहा वो अब मुझे


ज़हर का नश्तर,था चुभा सा

ज़ख़्म दिख रहा सब उसे


फिर सन्नाटा कुछ,है मलाल सा

बेजुबां कर रहा वो अब मुझे


खामोशी में मेरे,है सैलाब सा

सुनाई दे रहा सब उसे


गुज़रता नही वक़्त, दोबारा एक सा

ठोकरों में लग रही चोट अब मुझे


बिखर के रह गया,लहज़ा हयात सा

आसरा है तेरा,तुही सजा दे अब मुझे


रूह पे ज़िस्म,है हिज़ाब सा

बहारे ज़िन्दगी की सखन दे अब मुझे


सरस्वती वंदना

••••••••••••••


सर्व प्रथम नमन करूँ

वर दो ऐसा सौभाग्य प्राप्त करूं

श्वेत रूप,ब्रह्मविचार परमतत्व तुम

विद्या,कला की हो देवी तुम

हाथों में वीणा और पुस्तक धारण किये

श्वेत कमल का आसन विराजमान तुम


बुद्धि-शुद्धि अंतर्मन की,साहस-स्नेह से ह्रदय भर दो

अहिंसा,सत्य,अस्तेय,संयम जीवन यह कर दो

संपूर्ण जड़ता और अज्ञानता दूर करो तुम

मार्गदर्शन बुद्धिमत्ता से अब भर दो तुम


अज्ञानता का अंधकार मिटा कर

विनती भय ईर्ष्या द्वेष मिथ्या,नित दूर करो तुम

हे सरस्वती माँ !कल्याण करो तुम

विपदा संसार का दूर कर उद्धार करो तुम


ब्रह्मा,विष्णु एवं शंकर,देवता सभी पूजे तुमको

धूप,दीप, फल,मेवा,भेंट सभी स्वीकार करो तुम


चरण वंदना गुणगान सारा वन्दन करूँ

सर्वोच्य ऐशवर्य से अलंकृत जीवन कर दो

हे शारदे माँ !

वर दो ऐसा सौभाग्य प्राप्त करूँ


डायरी


कभी कभी दिल मचल उठता है

और तन्हाई रो उठती है

ज़िन्दगी भी हर पल नया करवट लेती है

जो बात हम कह नही पाते

वो शोर हर पल मचाती है

और ऐसे में जब मुस्कुराते हैं

तो आंख भर आती है

अगर बोला तो आवाज़ भर्रा जाती है

ऐसे में जिन्हें दिल ढूंढता है ,कभी तन्हाईयों में

उसका एहसास

हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन जाती है

जिन्हें अल्फाज़ो में लिख कर

हम अपनी डायरी बना देते हैं

और हर पन्ने को एहसास की चमक से

और खूबसूरत बना लेते हैं।


आखिरी ख़त

---–---–------–-------

वो जो आखिरी खत लिखने को तय्यार था

जो वो रोया,वो एक नही कई बार था

ज़ज़्बा-ए-दरया में वो न इस, न उस पार था

वो फरियादी, जो कशमकश में कई बार था

जिसने लम्हो को ताका हर बार था

वो आखिरी खत...


जो सुलझा सा, उलझा था,अलविदा कहने के वास्ते

अपने ज़ज़्बातों को स्याह रंग देने को तय्यार था

यह हाल सोचने में खुद को छोड़ा, जिसने कई बार था

वो आखिरी खत...


तन्हा हो जाने के ख्याल से जो डरा कई बार था

रिहाई आखिरी मुलाकात से करने को वो तय्यार था

घुटनो के बल बैठ,छुप के रोया जो कई बार था

वो आखिरी खत....


कुछ न कहना न सुनना था जिसे

कोरा कागज़ लिए लम्हो में टूटा वो बेशुमार था

हयात रूबरू तेरे हारा वह कई बार था

वो आखिरी खत....


वह आखिरी दिन,आखिरी सांझ,आखिरी रात थी

जब सब कुछ खत्म करने की बात थी

वह कौन सा पल था जो यह रुत आयी थी

कितनी ख़ामोश आवाज़ों ने रोका उसे कई बार था

वो आखिरी खत...

हयात रूबरू तेरे वह रोया उस दिन बेशुमार था


X- किरणों की खोज


एक आविष्कार खास हुआ,8 नवंबर 1895 को विचित्र हुआ,

Wihelm conrad roentgen ने x- किरणों का दिलचस्प जब खोज निकाला।

आज्ञात किरणे हरे चमक की,हर काग़ज़- धातु से पार हुआ!

फिर अपनी ही पत्नी के हाथ पर x- किरणों का पहला प्रयोग किया!

X- किरणों के प्रभाव से हड्डियों का विचित्र चित्र मिला!

यह पहला अवसर था जब जीवित व्यक्ति के ढ़ांचे को देखा था!

तब आ गई क्रांती संसार में ,विज्ञान के वरदान की!

प्रयोगशाला में जब x- रेज आयनाइजेशन रेडिएशन का घातक प्रभाव हुआ!!

थी वेदना वरदान की जब खुद के साथी को खोया था!

अपितु,विश्व ने इस आविष्कार को जन हित में सराह लिया।

समय समय पर x- किरणों की रेडिएशन के सदुपयोग को,

जब युग ने विस्तार से जान लिया था।

चिकित्सीय परिणामों को जांचने का माध्यम जब तलाशा था।

लाभार्थी अवसर को घातक प्रभाव से तब ऊपर तौल दिया।

हुई वाहवाही,मिला सम्मान x- किरणों की खोज का,

Roentgen जी को साल 1901 का भौतिकी का प्रथम नोबेल पुरस्कार मिला!!


स्वरचित रचना



By Rehana Fatima




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