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Anant
By Pratiksha Singh
आदि भी मैं अंत भी मैं हूँ ।
तुझमें मैं मुझमें भी मैं हूँ ।
जल में मैं हूँ थल में मैं हूँ ।
सृष्टि के कण कण में मैं हूँ ।
अंधकार और ज्योत में मैं हूँ ।
नीति में संयोग में मैं हूँ ।
जन्म मरण विलोप में मैं हूँ ।
मिलन में वियोग में मैं हूँ ।
अंतर में बाहर में मैं हूँ ।
सत्य असत्य और छल में मैं हूँ।
निर्बल मैं बलवान भी मैं हूँ ।
ज्ञानी मैं अज्ञान भी मैं हूँ।
निराशा मैं विश्वास भी मैं हूँ।
मौन मैं कोलाहल मैं हूँ।
लाभ में हानि में मैं हूँ ।
स्वार्थ मैं निस्वार्थ भी मैं हूँ ।
द्वार मैं आश्रय भी मैं हूँ ।
मार्ग मैं साधन भी मैं हूँ ।
चिंतन में और चलन में मैं हूँ ।
रोम रोम और श्वास में मैं हूँ।
By Pratiksha Singh