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लय
By Akshar Tekchandani
उसे मंच से कैसा भय ?
जिसकी माशूका हो लय |
कैसा भी छंद, कैसी भी ताल,
प्यार से सबको देदे शै,
जिसकी माशूका खुद लय,
उसे मंच से कैसे भय !
रियाज़ से जिसका भीगे तन
रियाज़ में जिसका डूबे मन,
उसकी तो होनी ही जय,
जिसकी माशूका खुद लय
उसे मंच से कैसा भय !
जीवनराह में जैसी भी परलय,
साधना जिसकी न रुके, न थमे,
अभ्यास-वक्त जो ईश्वर खोजे
ना देखे घड़ी व समय |
उसे मंच से कैसा भय,
जिसकी माशूका खुद लय ।
दिखावे नहीं दिल से उपजे,
रस-पूर्ण सात्विक अभिनय;
उसे मंच से कैसा भय |
पूरी शाम का नायक होकर
मंच पर एकल कलाकार होकर
भी ना हो जिसमें अंश-मात्र 'मैं'
उसकी तो होनी जय-जय
जिसकी माशूका खुद लय
उसे मंच से कैसा भय !
जिसे देख दर्शक की कुछ पल,
चिंताएं सब जाएं ढय;
मन की सारी निराशाएं
कुछ पल पीछे जाएं रह;
मंच पे कदम रखते ही जो,
दर्शकों का पढ़ले हिरदय,
भाई उसे मंच से कैसा भय |
कला से अपनी हर मन बहलादे
आम दर्शक रसिक बनादे |
ऐसे कलाकार तो जन्में विरले
उसे मंच से कैसा भय,
जिसकी माशूका खुद लय |
कोयल की कूक में
घर की नोक-झोंक में,
होली की पिचकारी में
शिशु की किलकारी में,
पंछी की उड़ान में
अल्लाह में और राम में,
प्रातःकाल से शाम में
प्रत्येक छोटे काम में,
हर ओर जिसे दीखे लय,
हर वक्त जो पूजे लय
भला, उसे मंच से कैसा भय ?
जिसकी माशूका हो खुद लय !
By Akshar Tekchandani