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भय
By Utkarsh Mishra
कभी फुरसत से बैठकर बनाऊँगा
एक पोटली खयालों की
उसमे भर दूँगा तुम्हारे समस्त भय
और बाँध दूंगा उसको अपने अतीत से
इन दोनों को बहाना ही
बचा सकता है समाज को धधकने से
ये टिके रहे तो स्वाहा कर देंगे
सकल संसार में व्याप्त प्रेम को
अब ज़माने को ज़रूरत नहीं
इन नकारात्मक भावों की
इनको बह जाने दो ये चुभते बहुत है
यह बहकाते है जनाब मामुली बहुत है
सुख दुःख आशा निराशा के बीच
हम खोजते रह जाते है प्रेम को
प्रेम परे है इन सभी भावों से
यह अकिंचन मन को दिखाता है
समृद्धि का अमर मार्ग
प्रेम भय से नहीं अपितु
सुसज्जित है सिर्फ सामर्थ्य से
प्रेम अविरल यात्रा है
मेरा तुम तक पहुँचने की
औरतुम्हारामुझमेंशामिलहोजानेकी।
By Utkarsh Mishra