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ग़ज़ल

By Deepa Khetawat






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By Dr. Tripti Mittal रात के साए में तेरी हर बात याद आती है तू महकाने की शराब सी हर दर्द की दवा बन जाती है कितने अरसे से तेरी आवाज़ भी अब तो सुनी नहीं दो पल तुझे पाने की आरज़ू तो कहकशां बन जाती है वो र

By Arushi (Aru Shan) मालिक कौन मुलाज़िम कौन यहां हर परिंदे के पैर एक डोर में बंधे हैं शाज़िम क्या उदासी क्या हर जज़्बात हमसे पहले हज़ारों ने टटोलें हैं गिरफ़्त किसकी गिरफ़्तार कौन बाज़ी इश्क की - सबने

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