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सफर
By Dr. Rohan Prabhakar
आधा ही सफर तय हुआ है
अभी तो सिर्फ…
रोज एक मुठ्ठी समय की रेत
बहा देता हूँ
दिन के ढलते ही
और हर रात
एक मुठ्ठी सितारें-
चुराने की नाकाम कोशिश
हर बार नयी उम्मीद के साथ !
जो पाया उसे न संभाल पाया…
जो खोया कभी वापस न आया…
आधा ही तो सफर तय हुआ है
अभी तो सिर्फ
आधा अभी बाकी है !
अंत में खोजना ही होगा
जो हमेशा साथ रहेगा
एक शाश्वत शून्य…
By Dr. Rohan Prabhakar