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वहम
By Bhaskar Sharma
लोगों की नज़रों से बचता बचाता हूँ
भीड़ में भी खुद को अकेला पाता हूँ
कुछ ख़र्च करता हूँ, कुछ बचाता हूँ
अजब वहम पाले नज़र आता हूँ
मैं, मेरी किताबें और तन्हाई, रौशनी से भरे इस शहर में,
वाहिद चराग़ हुआ जाता हूँ।
By Bhaskar Sharma