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वहम
By Syed Aamir Razaa
तुझे तो एक दिन जाना ही था,
फिर आज ये आंख नम क्यों है।
दर्द तो अंजान बातों की हती हैं,
फिर जान कर भी सारी बातें ये गम क्यों है।
साथ चलना तो तय नही था हमारा,
फिर ठेहरे ये नैन नम क्यों है।
मिलोगी हमें किसी रोज़,
जाते हुए भी ये वहम क्यों है।
बिखरे हैं टूटे ये अल्फाज़ मेरे,
बिछड़ना ये सितम क्यों है।
By Syed Aamir Razaa