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रूह
By Aashish Thanki
आखिर रूह छूट ही गई
मिट्टि के ढेला सा तन जल गया
और राख ही राख पीछे छूट गई
आखिर रूह छूट ही गई
समंदर की गहराइयों में
सम्हाल रखी थी सांसें
गहरी कोई ठिस लग ही गई
आखिर रूह छूट ही गई
मन्नत के धागे सी
दिल से बांध रखी थी
रेशम ये डोरी, गांठ से निकल ही गई
आखिर रूह छूट ही गई
आंख से रोशनी
दिल से धड़कन
जिस्म से जान निकल ही गई
आखिर रूह छूट ही गई
By Aashish Thanki