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राज़

By Swapna Jyoti


कुछ राज़ दबाए जाते हैं इस तरह

जैसे समंदर में नदियां खो जाती हैं

अपना अस्तित्व बचाने की जगह

स्वार्थ के आलिंगन में अच्छाई खो जाती है इस कदर

वक्त के साथ पहर दो पहर

एक सच को छुपाने के लिए



झूठ पे झूठ चढ़ता जाता है परत दर परत

थोड़े और की महत्वाकांक्षा बढ़ जाती है इतनी ज्यादा

कि उसे पूरा करने के लिए भटकते हैं दर ब दर

अंधेरे की खामोशियों में दफ्न हो जाती हैं बाते ऐसे कि आए न नजर

और चेहरे पे चेहरा लगा के लोग रहते हैं बेफिकर।


By Swapna Jyoti



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